आमेर का कछवाहा वंश

राजपूतों के कछवाहा वंश ने जयपुर रियासत पर शासन किया। यह रामचन्द्रजी के ज्येष्ठ पुत्र कुश के वंशज थे जिनका राजध्वज ‘पचरंगी ध्वजा’ (नीला, पीला, लाल, हरा और सफेद) तथा राजवाक्य ‘यतो धर्म स्तुतो जयः’ था। आमेर के ‘कदमी महल’ मे कछवाहा शासकों का राज्याभिषेक हुआ करता था। जयपुर में तोप के लिए दूसरा शब्द अग्नि जंतर प्रयुक्त होता था।
दुल्हेराय- इनके बचपन का नाम ‘तेजकरण’ था। इनके पिता सोढ़ासिंह ग्वालियर नरवर के शासक थे। इन्होंने 1007 ई. में मांच (जयपुर) और रामगढ़ के मीणाओं व दौसा के बड़गुजरों को हराकर दौसा में कछवाहा वंश की नींव रखी तथा दौसा को अपने साम्रज्य की प्रारम्भिक राजधानी बनाया। इन्होंने रामगढ़ में अपनी कुल देवी जमुवाय माता का मन्दिर बनवाया।

ध्यातव्य रहे- गुलाब के फूलों के उत्पादन के कारण रामगढ़ को ‘ढूँढाड़ का पुष्कर’ कहते हैं।


कोकिलदेव- इन्होंने 1035 ई. में आमेर के मीणाओं को पराजित कर आमेर को अपनी राजधानी बनाया व शेखावटी तक अपने साम्राज्य का विस्तार किया।
पृथ्वीराज कछवाहा(1503- 1527ई.)- यह सांगा का सामंत था जो खानवा के युद्ध में साँगा की तरफ से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ। पृथ्वीराज कछवाहा ने अपना राज्य अपने 12 पुत्रों बारह भागों में विभाजित कर उनमें बाँट दिया, इसलिए उस समय आमेर रियासत बारह कोटड़ी के नाम से प्रसिद्ध हुई।
रतनसिंह कछवाहा(1536-1547ई.)- यह राजपुताने का पहला शासक था जिसने अफगान शासक शेरशाह सूरी की अधीनता स्वीकार करी।
भारमल/बिहारीमल(1547-1573ई.)- इसे अकबर ने ‘अमीर-उल-उमरा’ की उपाधि दी, यह राजस्थान का प्रथम राजपूत शासक जिसने मुगल सम्राट अकबर की 1562ई. में अधीनता स्वीकार कर उसके साथ वैवाहिक संबंध स्थापित किए। भारमल ने अकबर की अजमेर यात्रा के दौरान चकताई खाँ की मदद से 6 जनवरी, 1562 ई. को साँभर में अपनी पुत्री जोधाबाई/हरखाबाई/मरियम-उज-जमानी कछवाहा राजकुमारी का विवाह अकबर से कर दिया, जिनसे सलीम/जहाँगीर पैदा हुआ। भारमल की सहायता से अकबर ने 1570ई. में नागौर दरबार लगाया, तो राजस्थान पर आक्रमण करने वाले और 16वीं शताब्दी के प्रारम्भ में एक एकीकृत राज्य बनाने वाले पहले मुगल सम्राट अकबर थे।
भगवंत दास(1573-1589ई.)- अकबर ने राजपूतों में पहली बार भगवंत दास को 5000 की मनसबदारी दी। इन्होंने अपनी पुत्री मानबाई/मनभावती/सुल्तान-ए-निस्सा/शाह बेगम का विवाह 13 फरवरी, 1585ई, को सलीम/जहाँगीर से कर दिया, जिनसे खुसरो पैदा हुआ। भगवंत दास की मृत्यु लाहौर में हुई।
मानसिंह प्रथम(1589-1614ई.)- इनका जन्म मौजमाबाद (साँभर) में 21 दिसम्बर,1550 ई. में हुई। यह 12 वर्ष की अल्पायु में अकबर की सेवा में चले गए। यह अकबर के नवरत्नों में से एक थे। अकबर ने मानसिंह को ‘फर्जन्द व राजा’ की उपाधि दी। इनका राज्याभिषेक प्रथम बार 1589 को पटना में जबकि दूसरी बार आमेर में हुआ। हल्दीघाटी युद्ध में यह अकबर का प्रधान सेनापति था। 1585 में अकबर द्वारा मानसिंह को काबुल का सूबेदार नियुक्त किया गया। दिसम्बर, 1587 में अकबर द्वारा उसे बिहार की सूबेदारी दी गई। मानसिंह ने 1592 ई. में उड़ीसा के अफगान शासक नासिर खाँ को पराजित कर उड़ीसा को मुगल साम्राज्य का अंग बनाया। अकबर ने इस विजय के बाद मानसिंह को बिहार के अतिरिक्त बंगाल का सूबेदार भी बनाया। मानसिंह ने बंगाल(1594ई.), उड़ीसा, एवं बिहार में अफगान विद्रोह दबाने में अहम भूमिका निभाई।
मानसिंह ने बिहार में मानपुर नगर, बंगाल में अकबर नगर, आमेर के दुर्ग में शिलादेवी (आमेर के कछवाहा वंश की अराध्य देवी), जगत शिरोमणि मंदिर तथा तथा वृन्दावन में गोविन्द देवजी का मन्दिर बनवाया। 1585 में मानसिंह ने काबुल विजय के पश्चात अकबर ने उनका मनसब 5000 जात व 5000 सवार कर दिया। अकबर ने 1605 ई. में अपनी मृत्यु के समय पूर्व मानसिंह एवं कोका अजीज को 7000 हजार की मनसबदारी प्रदान की थी, लेकिन ने शासक बनने के उपरांत मानसिंह के मनसब में कमी कर दी। मानसिंह की अहमद नगर अभियान के तहत् एलिचपुर (बरार, महाराष्ट्र) में मृत्यु हो गई। इसने दो मुगल बादशाहों(अकबर व जहाँगीर) के साथ कार्य किया। ध्यातव्य रहे- आमेर के राजा मानसिंह ने हरिनाथ, सुन्दरदास, हापा बारहठ, राय मुरारीदास, पुण्डरीक एवं जगन्नाथ जैसे विद्वानों को सरंक्षण प्रदान किया,तो जगन्नाथ ने मानसिंह कीर्ति मुक्तावली, राय मुरारीदास न मानचित्र तथा पुण्डरिक विटठ्ल ने रागचन्द्रोदय, रागमंजरी व नर्तन निर्णय ग्रंथों की रचना की। मीनाकारी कला राजस्थान में सर्वप्रथम मानसिंह द्वारा लाई गई। मानसिंह प्रथम के बाद भावसिंह(1614-1621ई.)कच्छवाह वंश का शासक बना।
मिर्जा राजा जयसिंह प्रथम(1621-1668ई.)- मानसिंह प्रथम का पुत्र जिसने तीन मुगल बादशाहों (जहाँगीर, शाहजहाँ और औरंगजेब) के साथ सर्वाधिक अवधि तक कार्य किया। शाहजहां द्वारा शाहशुजा के विरूद्ध भेजी गई मुगल सेना का सेनापति मिर्जा राजा जयसिंह ही था। शाहजहाँ ने इसे ‘मिर्जा राजा’ की उपाधि दी। सामुगढ़ के युद्ध में दारा की पराजय का समाचार मिलते ही मिर्जा राजा जयसिंह ने औरंगजेब की अधीनता स्वीकार कर ली थी। 11 जून, 1565ई. में शिवाजी के पुरन्दर युद्ध में 44000 सैनिकों के साथ डेरी डालकर शिवाजी के साथ ‘पुरन्दर की संधि’ की। उस समय वहाँ बर्नियर नामक यात्री भी उपस्थित था। औरंगजेब ने 2 जुलाई, 1668 को बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) के निकट जहर देकर जयसिंह की हत्या करवा दी। ध्यातव्य रहे- मिर्जा राजा जयसिंह का आश्रित कवि बिहारी था, जिसने ‘बिहारी सतसई’ नामक ग्रंथ की रचना की। इस ग्रंथ के प्रत्येक दोहे की रचना पर जयसिंह ने इसे एक सवर्ण मुद्रा प्रदान की।
ध्यातव्य रहे- अकबर के काल में हिन्दु मनसबदारों का हिस्सा 22 प्रतिशत था, तो औरंगजेब ने अपने शासनकाल में हिन्दू (राजपूत व मराठा) मनसबदारों की संख्या बढ़ाकर 33 प्रतिशत कर दी, जो शासकों में सर्वाधिक थी।
सवाई जयसिंह द्वितिय (1700-1743 ई.)- इसकी वाकपटुता से प्रभावित होकर औरंगजेब ने ‘सवाई’ की उपाधि दी। सवाई जयसिंह को ‘जयपुर का चाणक्य’ भी कहते है, इसने सर्वाधिक सात मुगल बादशाहों (औरंगजेब, मुहज्जम/बहादुर शाह प्रथम, जहाँदर शाह, फर्रूखशियर, रफी-उदौला, रफी-उद-दर-जात, रोशन अख्तर/मुहम्मद शाह रंगीला) के साथ कार्य किया। मुहम्मद शाह ने सवाई जयसिंह को सरमद-ए-राजा-ए-हिन्द, राजराजेश्वर व श्री राजाधिराज सवाई की उपाधि दी।
सवाई जयसिंह के राज्य कवि श्री कृष्णभट्ट कलानिधि ने रामा रास ग्रंथ की रचना की। जयपुर नगर/जय नगर- 18 नवम्बर, 1727 ई. में सवाई जयसिंह ने इसकी नींव रखी 1729 ई. में पुरा हुआ। इसके वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य(बंगाली ब्राह्मण) थे। कछवाह राजवंश के संरक्षण में विद्याधर ने लॉग टेबिल का अनुवाद विभाग सारणी के रूप में किया। जयपुर पहला नगर है जो नक्शों के आधार पर बसाया गया। सवाई जयसिंह अन्तिम हिन्दू राजा था जिसने 1740 में ‘राजसूय/वाजपेय/अश्वमेघ यज्ञ’ सिटी पैलेस के चन्द्रमहल में करवाया। इस यज्ञ के राज पुरोहित पुण्डरीक रत्नाकर थे। ब्राह्मणों के रहने हेतु सवाई जयसिंह ने जलमहल का निर्माण करवाया। इस यज्ञ के घोड़ो को कुम्भाणी रातपूतों ने रोका। जयपुर में कनक भवन का निर्माण सवाई जयसिंह द्वारा करवाया गया।
1736 में जयसिंह की भेंट बाजीराव से भेंट भंभोला नामक स्थान पर हुई। सवाई जयसिंह द्वितीय ने विधवा पुनर्विवाह हेतु नियम बनाने का प्रयत्न किया।
फर्रूखशियार ने सवाई जयसिंह द्वितिय को 7000 मनसब जात व सवार देकर उसे 1713 ई. में मालवा का सूबेदार बनाया था, तो सम्राट मुहम्मदशाह ने 1730 ई, में इन्हें पुनः दुबारा मालवा का सूबेदार बनाया था।
ध्यातव्य रहे– मुगल सम्राटों द्वारा सवाई जयसिंह को तीन बार मालवा का सूबेदार नियुक्त किया गया। 1730 ई. में सवाई जयसिंह द्वितीय ने दीपसिंह के नेतृत्व में एक श्ष्ठिमंडल मराठा राजा शाहू के पास सतारा भेजा था। जयसिंह द्वितीय के शासनकाल में सेना की भर्ती और वेतन के लिए बख्शी अधिकारी उत्‍तरदायी था। जयपुर के जयगढ़ किले में तोप ढालने का कारखाना व जयबाण तोप (एशिया की सबसे बड़ी तोप जिसकी मारक क्षमता लगभग 22 मील है।) के निर्माण का कार्य सवाई जयसिंह ने पूर्ण करवाया था। बूंदी नरेश महाराव बुद्धसिंह की पत्नी महारानी अमर कुवंरी सवाई जयसिंह की बहिन थी। सवाई जयसिंह ने दिल्ली (सबसे प्राचीन 1724 ई. में), जयपुर (सबसे बड़ी 1734 ई. में बनी जो यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर सूची में सम्मिलित), बनारस, उज्जैन व मथुरा में ग्रह नक्षत्र की गती का अध्ययन करने हेतु पाँच सौर वेध शालाएँ/जंतर मंतर बनवाया तथा 1733 ई. में ‘जीज मुहम्मद शाही’ नामक पुस्तक की रचना की जो नक्षत्रों के ज्ञान से संबंधित है, तो यूरोपीय खगोलशास्त्री क्लाड बोडियर, आंद्रे स्ट्रोबल, फादर एंटानी गेबेल्स परग्वे व फादर द सिल्वा सवाई जयसिंह के निमंत्रण पर जयपुर आए थे।
ईश्वरी सिंह (1743-1750ई.)- 1 मार्च, 1747 ई. में ईश्वरी सिंह व माधोसिंह के मध्य उत्‍तराधिकारी विवाद को लेकर राजमहल (टोंक) में युद्ध हुआ था। इस युद्ध में ईश्वरी सिंह विजयी हुआ, इस जीत की खुशी में जयपुर के त्रिपोलिया बाजार में सात मंजिला ईसरलाट/सरगासूली बनवाई जहाँ उसने 1750 में मल्हार राव होल्कर (मराठों) के भय से कूदकर आत्महत्या कर ली।
सवाई माधोसिंह प्रथम(1750ई.-1778ई.)- इसने सवाईमाधोपुर नगर, मोती डूंगरी महल तथा शील की डूंगरी (चाकसू) में शीतला माता का मंदिर बनवाया। इसके काल में जनता ने मराठा सैनिकों का जयपुर में कत्लेआम किया। 18वीं शताब्दी में आमेर के शासक मधोसिंह प्रथम ने अपने राज्य के खिलाड़ियों को संरक्षण दिया था और यहाँ तक की उन्हें देश के दूसरे स्थानों में प्रतियोगिताओं में भाग लेने हेतु भी भेजा था।
सवाई प्रतापसिंह(1778-1803ई.)- यह ‘ब्रजनिधि’ के नाम से कविता लिखता था। इसके दरबार में ‘गुणीजनखाना/बाईसी भरमार(22 विद्वानों का दल अर्थात् 22 कवि, 22 ज्योतिषी,22 संगीतज्ञ एवं 22 विषय विशेषज्ञ के रूप में ‘गन्धर्व बाइसी’)’ थे। इसने जयपुर में एक संगीत सम्मेलन का आयोजन करवाया जिसके अध्यक्ष ‘देवऋषि ब्रजपाल भट्ट’ थे तथा इसी सम्मेलन में ‘राधागोविंद संगीतसार’ नामक ग्रंथ की रचना की गई। इसने 1799 ई. में हवामहल का निर्माण करवाया, जिसकी दूसरी शताब्दी 1999 में मनाई गई। इन्होंने तुंगा के मैदान में महादजी सिंधिया को हराया। जयपुर के इतिहास में सवाई प्रतापसिंह को कला, संगीत एवं साहित्य का महान् आश्रयदाता माना जाता है।
जगतसिंह-2 (1803-1818 ई.)- इसने ईस्ट इण्डिया कम्पनी के साथ 2 अप्रैल ,1818 ई. में संधि की। जगतसिंह को ‘जयपुर का बदनाम शासक’ प्रेमिका रसकपूर नामक वैश्या के कारण जाना जाता है।
रामसिंह-2 (1835-1880ई.)- इन्होंने 1857 की क्रांति में अंग्रेजों की तन-मन-धन से सहायता की। उसके बदले इन्हें ‘सितार-ए-हिन्द’ की उपाधि व कोटपुतली परगना दिया गया। इन्होंने मदरसा-ए-हुनरी (राजस्थान आफ आटर्स), महाराजा कॉलेज, संस्कृत कॉलेज, 1878 ई. में रामप्रकाश थियेटर (राजस्थान का सबसे प्राचीन) व 1876 ई. में प्रिंस ऑफ वेल्स की जयपुर यात्रा की स्मृति में अल्बर्ट हॉल बनवाया। अल्बर्ट हॉल का शिलान्यास प्रिंस अल्बर्ट एडवर्ड सप्तम् ‘प्रिंस ऑफ वेल्स’ ने किया। इसके वास्तुकार ‘सर स्टीवन’ थे। जयपुर शहर को 1876 ई. में प्रिंस अल्बर्ट के आने की खुशी में रामसिंह द्वितीय ने पिंक/गेरूआ रंग से पुतवाया। रामसिंह द्वितीय को ‘जयपुर का समाज सुधारक शासक’ कहते हैं।
माधोसिंह-2 (1880-1922ई.)- यह प्रिंस अल्बर्ट एडवर्ड सप्तम के राज्यभिषेक समारोह में भाग लेने इंग्लैण्ड गये। इस यात्रा के दौरान चाँदी के दो पात्रों में गंगाजल भरकर ले गए थे, जो आज भी सिटी पैलेस में हैं। इन्होंने पण्डित मदन मोहन मालवीय को बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय हेतु पाँच लाख रूपए दान में दिए।
मानसिंह-2 (1922-1949ई.)- 30 मार्च, 1949 के पश्चात् इन्हें आजीवन राजप्रमुख बनाया गया, तो वहीं स्पेन में यह भारत के राजदूत भी रहे। राजस्थान के प्रथम उच्च न्यायालय का उद्घाटन महाराजा सवाई मानसिंह के द्वारा किया गया था। महारानी गायत्री देवी गर्ल्स स्कुल राजस्थान के पहले महिला कन्या विद्यालय की स्थापना जयपुर में की गई। राजस्थान विश्वविद्यालय की स्थापना 8 जनवरी, 1947 को जयपुर महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय के समय राजपूताना विश्वविद्यालय के नाम से हुई थी, तो वर्ष 1956 में इसे वर्तनाम दिया गया था। राजस्थान की प्रथम महिला लोकसभा सदस्य गायत्री देवी (जयपुर) थी। भारत की पहली मर्सिडीज बेंज W 126 500 SEL आयात करने का श्रेय महारानी गायत्री देवी को दिया जाता है। ‘एक राजकुमारी की यादें’ महारानी गायत्री देवी की आत्मकथा का शीर्षक है।

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *